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 समास

 समास

‘समास’ शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है-छोटा रूप । हिन्दी व्याकरणानुसार-जब दो या दो से अधिक पद (शब्द) अपने बीच की विभक्तियों का लोप कर जो छोटा रूप बनाते हैं, तब उसे समास कहते हैं तथा इस विधि से बने शब्दों को सामासिक शब्द या समस्त पद कहते हैं।यथा-राजा की माता = राजमाता,देव के लिए बलि = देवबलिमाता और पिता = माता-पितासत् है जो जन = सज्जनसमास विग्रह किसी सामासिक शब्द या समस्तपद को उसके पदों एवं विभक्तियों सहित पुनः पृथक् करने की क्रिया को समास का विग्रह करना कहते हैं।यथा-रसोई घर = रसोई के लिए घरलाभ-हानि = लाभ या हानिघनश्याम = घन जैसा श्याम है

1. अव्ययीभाव समास‘अव्ययीभाव’ शब्द ‘अव्यय’ से बना है। शब्द जिनमें लिंग, वचन, कारक, काल के कारण वाक्य में प्रयुक्त होने पर कोई परिवर्तन नहीं होता बल्कि ज्यों के त्यों बने रहते हैं, उन्हें अव्यय कहते हैं। फलतः अव्ययीभाव समास में सम्पूर्ण सामासिक पद क्रिया विशेषण ‘अव्यय’ की तरह प्रयुक्त होता है तथा प्रायः पहला पद प्रधान रहता है।सामासिक पद एवं उनका विग्रहयथाशक्ति = शक्ति के अनुसारयथाक्रम = क्रम के अनुसारयथावसर = अवसर के अनुसारप्रतिवर्ष = प्रत्येक वर्ष, हर वर्षसमक्ष = अक्षि के सामनेप्रत्यक्ष = अक्षि (आँख) के आगेहाथोंहाथ = हाथ ही हाथ में/एक हाथ से दूसरे हाथ तकरातोंरात = रात ही रात मेंदिनोंदिन = दिन अनुदिन, दिन के बाद दिन

2. तत्पुरुष समास(तत् = वह, उसका पुरुष = आदमी = वह दूसरा आदमी/उसका आदमी)तत्पुरुष सामासिक पद में दूसरा पद (उत्तर पद) प्रधान होता है। इसके बनाने में कारकीय चिह्नों अर्थात् विभक्तियों का लोप होता है तथा विग्रह करने पर पुनः विभक्तियाँ प्रयुक्त होती हैं।जब समास बनाने में कर्ता व शेष सभी कारकों की विभक्तियों का लोप होता है तथा उसी के आधार पर उसका नामकरण किया जाता है, यथा-

3. द्वन्द्व समासजिस सामासिक पद में दोनों पद या सभी पद प्रधान होते हैं तथा जिसका विग्रह करने पर दोनों पदों के बीच ‘और’ अथवा ‘या’ संयोजक प्रयुक्त होता है। इसके दोनों पद प्रायः एक-दूसरे के विलोम होते हैं, सदैव नहीं। यथा-नर-नारी = नर और नारीभूल-चूक = भूल और चूकलूट-मार = लूटना और मारनाजीवन-मरण = जीवन या मरणपाप-पुण्य = पाप या पुण्यधर्माधर्म = धर्म या अधर्म

4. बहुब्रीहिजिस समास में कोई भी पद प्रधान नहीं होता अपितु दोनों ही पद गौण रहकर तीसरे ही अन्य अर्थ का बोध कराते हैं उसे बहुव्रीहि समास कहते हैं।चतुर्भुज = चार हैं भुजाएँ जिसकी वह (विष्णु)चतुरानन = चार हैं आनन जिसके वह (ब्रह्मा)चक्र-पाणि = चक्र है पाणि में जिसके वह (विष्णु/कृष्ण)पीताम्बर = पीत (पीला) है अम्बर जिसके वह (कृष्ण)

5. द्विगुद्विगु सामासिक पद में प्रायः पूर्व पद संख्यावाचक होता है किन्तु वह संख्या किसी समूह का बोध कराती है अन्य अर्थ का नहीं तथा इसकाविग्रह करने पर ‘समूह’ या ‘समाहार’ शब्द प्रयुक्त होता है। यथा-त्रिभुज = तीन भुजाओं का समूहचौमासा = चार मास का समाहारपंचामृत = पाँच अमृतों का समूहसतसई = सात सौ का समूहनवरात्र =  नौ रात्रियों का समाहारदशक = दस का समाहा

6. कर्मधारयजिस समस्त पद के दोनों पदों में विशेषण-विशेष्य का सम्बन्ध होता है तथा विग्रह करने पर दोनों पदों में एक ही कारक की विभक्ति प्रयुक्त होती है। उसे कर्मधारय-समास कहते हैं।नीलकमल = नील है जो कमलसज्जन = सत् है जो जनबहुमूल्य = बहु है जिसका मूल्यक्रोधाग्नि = अग्नि रूपी क्रोधसंसार-सागर = सागर रूपी संसारअधमरा = आधा है जो मरा ।

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