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CLASS 10TH SCIENCE IMPORTANT NOTES 2024

CLASS 10TH हमारा पर्यावरण

हमारा पर्यावरण CLASS 10 TH NOTES

हमारा पर्यावरण
जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रण

इन चक्रों में अनिवार्य पोषक तत्व जैसे – नाइट्रोजन, कार्बन, ऑक्सीजन एवं जल एक रूप से दुसरे रूप में बदलते रहते है| उदाहरण : नाइट्रोजन चक्र में नाइट्रोजन वायुमंडल में विभिन्न रूपों में एक चक्र बनाता है|
कार्बन चक्र :- में कार्बन वायुमंडल के विभिन्न भागों से अपने एक रूप से दुसरे रूप में बदलता रहता है इससे एक चक्र का निर्माण होता है|
पर्यावरण :– वे सभी चीजें जो हमें हमें घेरे रखती हैं जो हमारे आसपास रहते हैं | इसमें सभी जैविक तथा अजैविक घटक शामिल हैं| इसलिए सभी जीवों के आलावा इसमें जल व वायु आदि शामिल हैं|

पर्यावरणीय अपशिष्ट :- जीवों द्वारा उपयोग की जाने वाले पदार्थो में बहुत से अपशिष्ट रह जाते है जिनमें से बहुत से अपशिष्ट जैव प्रक्रमों के द्वारा अपघटित हो जाते है और बहुत से ऐसे अपशिष्ट होते है जिनका अपघटन जैव-प्रक्रमों के द्वारा नहीं होता है एवं ये पर्यावरण में बने रहते है|

  1. जैव निम्नीकरणीय :- वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम के द्वारा अपघटित हो जाते है जैव निम्नीकरणीय कहलाते हैं|
    उदाहरण :- सभी कार्बनिक पदार्थ जो सजीवों से प्राप्त होते है उनका जैव प्रक्रम द्वरा अपघटन होता हैं| गोबर, सूती कपड़ा, जुट, कागज, फल और सब्जियों के छिलके, जंतु अपशिष्ट आदि
  2. अजैव निम्नीकरणीय :– वे पदार्थ जिनका जैविक प्रक्रमों के द्वारा अपघटन नहीं होता है अजैव निम्नीकरनीय कहलाते हैं| उदाहरण, प्लास्टिक, पोलीथिन, सश्लेषित रेशे, धातु, रेडियोएक्टिव पदार्थ तथा कुछ रसायन (डी. टी. टी. उर्वरक) आदि जो अभिक्रियाशील होते है और विघटित नहीं हो पाते हैं|
    परितंत्र :-
    जैव निम्नीकरनीय पदार्थों के गुण :-
    (i) ये पदार्थ सक्रीय होते हैं|
    (ii) इनका जैव अपघटन होता है|
    (iii) ये बहुत कम ही समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं|
    (iv) ये पर्यावरण को अधिक हानि नहीं पहुँचाते हैं|
    जैव अनिम्नीकरनीय पदार्थों के गुण :-
    i. ये पदार्थ अक्रिय होते हैं|
    ii. इनका जैव अपघटन नहीं होता है|
    iii. ये लंबे समय तक पर्यावरण में बने रहते हैं|
    iv. ये पर्यावरण के अन्य पदार्थों को हानि पहुँचाते हैं|
    जैव निम्नीकरणीय व अजैव निम्नीकरणीय पदार्थों में अन्तर
    (Differences between Biodegradable and Non-biodegradable wastages) –
    क्र.सं. जैव निम्नीकरणीय पदार्थ अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ
  3. वे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते है, जैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते है। ऐसे पदार्थ जो जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित नहीं होते है ,अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ कहलाते है।
  4. इसकी उत्पत्ति जैविक होती है। ये सामान्यतः मानव द्वारा निर्मित होते है।
  5. ये प्रकृति में इकट्ठे नहीं होते है। इनका ढ़ेर लग जाता है एवं प्रकृति में इकट्ठे हो जाते है।
  6. ये जैव आवर्धन प्रदर्शित नहीं करते हैं। घुलनशील अजैव निम्नीकरणीय पदार्थ खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं अर्थात् जैव आवर्धन प्रदर्शित करते है।
  7. उदाहरण – मल-मूत्र, कागज, शाक, फल आदि। उदाहऱण – प्लास्टिक, D.D.T., ऐल्युमिनियम के डिब्बे आदि।

परितंत्र :- किसी भी क्षेत्र के जैव तथा अजैव घटक मिलकर संयुक्त रूप से एक तंत्र का निर्माण करते हैं जिन्हें परितंत्र कहते है| जैसे बगीचा, तालाब, झील, खेत, नदी आदि| उदाहरण के लिए बगीचा में हमें विभिन्न जैव घटक जैसे, घास, वृक्ष,

जैव घटक :- किसी भी पर्यावरण के सभी जीवधारी जैसे – पेड़ – पौधे एवं जीव – जन्तु जैव घटक कहलाते हैं|
अजैव घटक :– किसी परितंत्र के भौतिक कारक जैसे- ताप, वर्षा, वायु, मृदा एवं खनिज इत्यादि अजैव घटक कहलाते हैं|
परितंत्र दो प्रकार के होते है :
(i) प्राकृतिक परितंत्र :- वन, तालाब नदी एवं झील आदि प्राकृतिक परितंत्र हैं|
(ii) कृत्रिम परितंत्र :- बगीचा, खेत आदि कृत्रिम अर्थात मानव निर्मित परितंत्र हैं|

जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों का वर्गीकरण:-
जीवन निर्वाह के आधार पर जीवों को तीन भागों में विभाजित किया गया है-

  1. उत्पादक (Producter)
  2. उपभोक्ता (Consumer)
  3. अपघटक (Decomposer)

पारितंत्र के मुख्य दो घटक हैं।

  1. अजैविक घटक
    · अकार्बनिक – इसमें जल (H2O), CO2, लवण, अमोनिया (NH3), फॉस्फोरस, पौटेशियम आदि।
    · कार्बनिक – इसमें प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट आदि अणु सम्मिलित हैं।
    · भौतिक – इसमें वातावरणीय कारक जैसे वायु, जल, मृदा, ताप, प्रकाश आदि सम्मिलित हैं।
  2. जैविक घटक– इसमें विभिन्न जीवधारी सम्मिलित किये जाते हैं।
    i. उत्पादक या स्वपोषी (Producers or Autotrophs) – वे जीव जो सूर्य के प्रकाश में अकार्बनिक पदार्थों जैसे शर्करा व स्टार्च का प्रयोग कर अपना भोजन बनाते हैं, उत्पादक कहलाते हैं।
    अर्थात् प्रकाश संश्लेषण करने वाले सभी रहे पौधे, नील-हरित शैवाल आदि उत्पादक कहलाते हैं।
    Image
    ii. उपभोक्ता या विषमपोषी (Consumers or Heterotrophs) – वे जीव जो उत्पादकों द्वारा उत्पादित भोजन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से निर्भर रहते है, उपभोक्ता कहलाते है ।

1. शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता – ये अपने पोषण के लिए हरे पौधों अर्थात् उत्पादकों पर निर्भर रहते है। उदाहरण – बकरी, गाय, हिरण, खरगोश आदि।
2. छोटे माँसाहारी या द्वितीयक उपभोक्ता – ये शाकाहारी जंतुओं या प्राथमिक उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में ग्रहण करते है। उदाहरण – मेढ़क, लोमड़ी, कुत्ता, बिल्ली आदि।
3. बड़े माँसाहारी या तृतीयक अपभोक्ता – कुछ माँसाहारी जीव जो दूसरे माँसाहारी जीवों या द्वितीयक उपभोक्ता को मारकर अपना भोजन प्राप्त करते है, तृतीय उपभोक्ता कहलाते है, इन्हें उच्च उपभोक्ता कहते है। उदाहरण – गिद्ध, बाज, शेर आदि।
4. सर्वाहारी अथवा सर्वभक्षी – वे जीव जो सजीव व उनके द्वारा उत्सर्जित पदार्थों तथा मृत जीवों को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते है, सर्वाहारी कहलाते है। उदाहरण – कॉकरोच।
5. परजीवी – वे जीव जो दूसरे जीवों को बिना मारे, उनके शरीर पर आश्रित होकर अपना पोषण प्राप्त करते हैं, परजीवी कहलाते है। उदाहरण – जूँ , मनुष्य की आंत में रहने वाले जीवाणु।
iii. अपघटक जीव या सूक्ष्म उपभोक्ता (Decomposers or microconsumers) – ये मृत जीवों अथवा सड़े-गले पदार्थों के जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करते है । सरल कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थों को ये सूक्ष्म उपभोक्ता भोजन के रूप में अवशोषण करते है, इन्हें अपमार्जक भी कहते है । उदाहरण – अपघटक जीवाणु , कवक आदि।
उत्पादक उपभोक्ता
उत्पादकों की श्रेणी में वनस्पतियों को रखा जाता हैं। इसके अन्तर्गत उन जीवों को रखा जाता हैं जो भोजन के लिए उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं।
ये स्वपोषी (autotrophic) होते हैं। ये परपोषी (heterotrophic) होते हैं।
सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में प्रकाश-संश्लेषण (photo-synthesis) की क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं प्रकाश-संश्लेषण (photo-synthesis) की क्रिया नहीं होती हैं, अत: स्वयं भोजन का निर्माण नहीं कर पाते हैं।
उत्पादक एक ही प्रकार के होते हैं। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं
i. शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता ।
ii. द्वितीयक उपभोक्ता — जो शाकाहारियों को खाते हैं।
iii. तृतीयक या उच्च श्रेणी के उपभोक्ता — जो शाकाहारी एवं प्राथमिक उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में खाते हैं।
ये उत्पादकों द्वारा उत्पन्न भोज्य पदार्थों का उपयोग करते हैं।

आहार श्रृंखला या खाद्य श्रृंखला (food chain) – जीवों की एक ऐसी श्रृंखला जिसके अन्तर्गत खाने व खाए जाने की पुनरावृति द्वारा खाद्य ऊर्जा का प्रवाह होता है, उसे खाद्य श्रृंखला कहते है।
अथवा
पादप स्रोत से विभिन्न जीवों की श्रृंखला द्वारा खाद्य ऊर्जा का संचरण खाद्य श्रृंखला कहलाता है।
अथवा
जीवों की वह श्रृंखला जिसके प्रत्येक चरण में एक पोषी स्तर का निर्माण करते हैं जिसमें जीव एक-दूसरे का आहार करते हैं। इस प्रकार विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की इस श्रृंखला को आहार श्रृंखला कहते हैं।
खाद्यश्रृंखलावखाद्यजालक्याहैखाद्यश्रृंखलावखाद्यजालक्याहै
उदाहरण :-

(a) हरे पौधे → हिरण → बाघ
(b) हरे पौधे → टिड्‌डा→ मेंढक → साँप → गिद्ध/चील
(c) हरे पौधे → बिच्छु → मछली→ बगूला
पोषण स्तर (trophic level) अथवा पोषी स्तर अथवा ऊर्जा स्तर – खाद्य श्रृंखला के प्रत्येक स्तर अथवा कड़ी या जीव को पोषण स्तर कहते है।
स्वपोषी या उत्पादकों को प्राथमिक पोषी स्तर, शाकाहारी या प्राथमिक उपभोक्ता को द्वितीय पोषी स्तर , छोटे माँसाहारी या द्वितीय उपभोक्ताओं को तृतीय पोषी स्तर तथा उच्च उपभोक्ता को चतुर्थ पोषी स्तर कहते है ।
प्राथमिक पोषी स्तर (उत्पादक) सूर्य की ऊर्जा को ग्रहण करके उसे रासायनिक ऊर्जा में बदलकर संग्रहित कर लेते है ,यही ऊर्जा विभिन्न पोषी स्तरों को स्थानान्तरित होती रहती है जो उनके जैविक क्रियाकलापों को करने में सहायक होती है ।
खाद्य जाल (food web) – पारिस्थितिक तंत्र में एक से अधिक खाद्य श्रृंखलायें आपस में किसी न किसी खाद्य क्रम (पोषण स्तर) में जुड़कर एक जटिल जाल सा बना लेती है, जिसे खाद्य जाल कहते है।

खाद्य जाल में एक जीव एक से अधिक जीवों द्वारा खाया जाता है। इससे जीवों को भोजन प्राप्ति के एक अधिक विकल्प मिल जाते है । इससे पारितंत्र में जीवों के मध्य संतुलन बना रहता है । उदाहरण – जैसे चूहे को बिल्ली व सांप द्वारा खाया जाता है इससे चूहों की संख्या नियंत्रित रहती है । अन्यथा चूहों की संख्या बढ़ जाती और पारितंत्र में अव्यवस्था हो जाती है।
आहार श्रृंखला आहार जाल
i. इसमें कई पोषी स्तर के जीव मिलकर एक श्रृंखला बनाते है। i. इसमें कई आहार श्रृंखलाएँ एक दूसरे से जुड़ी होती है।
ii. इसमें ऊर्जा प्रवाह की दिशा रेखीय होती है। ii. इसमें ऊर्जा प्रवाह शाखान्वित होती है।
iii. आहार श्रृंखला सामान्यत: तीन या चार चरण की होती है। iii. यह यह एक जाल की तरह होता है जिसमें कई चरण होते हैं।

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