Chapter 9 प्रकाश- परावर्तन तथा अपवर्तन

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कक्षा 10 विज्ञान नोट्स
Chapter 9 प्रकाश- परावर्तन तथा अपवर्तन
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प्रकाश (Light)
हम किसी वस्तु को कैसे देख पाते है :- वस्तु पर पड़ने वाले प्रकाश को वस्तु परावर्तित कर देती है, यह परावर्तित किरण जब हमारी आँखों के द्वारा ग्रहण किया जाता है तो यह परावर्तन वस्तु को आँखों के द्वारा देखने योग्य बनाता है|
प्रकाश की किरण :- जब प्रकाश अपने प्रकाश के स्रोत से गमन करता है तो यह सीधी एवं एक सरल रेखा होता है| प्रकाश के स्रोत से चलने वाले इस रेखा को प्रकाश की किरण कहते है|

छाया :- जब प्रकाश किसी अपारदर्शी वस्तु से होकर गुजरता है तो यह प्रकाश की किरण को परावर्तित कर देता है जिससे उस अपारदर्शी वस्तु की छाया बनती है|
प्रकाश का विवर्तन :- यदि प्रकाश के रास्ते में राखी अपारदर्शी वस्तु अत्यंत सूक्ष्म हो तो प्रकाश सरल रेखा में चलने की अपेक्षा इसके किनारों पर मुड़ने की प्रवृति दिखता है इस प्रभाव को प्रकाश का विवर्तन कहते है|
प्रकाश का परावर्तन :- जब प्रकाश की किरण किसी चमकीले सतह से या परावर्तक पृष्ठ से टकराता है तो यह उसी माध्यम में पुन: मुड़ जाता है जिस माध्यम से यह आता है| इस परिघटना को प्रकाश का परावर्तन कहते है|

प्रकाश का परावर्तन हमेशा अपारदर्शी वस्तुओं से ही होता है| जबकि प्रकाश का अपवर्तन पारदर्शी वस्तुओं से होता है|
प्रकाश के परावर्तन का नियम :-
⦁ आपतन कोण, परावर्तन कोण के समान होता है|
∠ i = ∠ r
⦁ आपतित किरण, दर्पण के आपतन बिंदु पर अभिलम्ब और परावर्तित किरण, सभी एक ही तल में होते हैं|
नोट :- परावर्तन का यह नियम गोलीय दर्पण सहित सभी परावर्तक पृष्ठों पर लागु होता है|
परावर्तन दो प्रकार का होता है—
(i) नियमित परावर्तन      (ii) विसरित परावर्तन

(i) नियमित परावर्तन (Regular Reflection) – ऐसी परिघटना जिसके कारण किसी माध्यम में से जाता हुआ एक समान्तर प्रकाश पुंज एक चिकनी पॉलिश की गयी सतह (पृष्ठ) पर टकराने के बाद इससे एक समान्तर पुंज के रूप में किसी निश्चित दूसरी दिशा में निकलता है इसे नियमित परावर्तन कहते है।

(ii) अनियमित या विसरित परावर्तन (Diffused Reflection)- ऐसी परिघटना जिसके कारण किसी माध्यम में से जाता हुआ एक समान्तर प्रकाश पुंज एक खुरदरे सतह (पृष्ठ) पर टकराने के बाद प्रकाश को सभी दिशाओं में बिखेरने के प्रभाव को विसरित परावर्तन कहते हैं।

नियमित परावर्तन विसरित परावर्तन
(i) चिकनी सतह से होने वाले परावर्तन को नियमित परावर्तन कहते हैं। (i) खुरदरे सतह से होने वाले परावर्तन को विसरित परावर्तन कहते हैं।
(ii) सभी परावर्तित किरण एक-दूसरे के समान्तर होती है। (ii) सभी परावर्तित किरण एक-दूसरे के समान्तर नहीं होती है।
(iii) परावर्तन किरण एक दिशा में होती है। (iii) परावर्तन किरण एक दिशा में नहीं होती है।
नोट :- सामान्यत: काँच अथवा पारदर्शी पदार्थ के पीछे वाले भाग पर परावर्तक आवरण (चाँदी अथवा ऐल्युमिनियम की परत) लगाकर उन्हें दर्पण या परावर्तक पृष्ठ की तरह उपयोग में लिया जाता है।
परावर्तन के नियम (Laws of Reflection)—

प्रथम नियम- आपतित किरण, परावर्तित किरण व अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते है।
द्वितीय नियम- आपतन कोण व परावर्तन कोण का मान सदैव बराबर होता है।
∠i=∠r
आपतन कोण – आपतित किरण व अभिलम्ब के मध्य बनने वाला कोण।
परावर्तन कोण – परावर्तित किरण व अभिलम्ब के मध्य बनने वाला कोण।
समतल दर्पण में प्रतिबिम्ब – समतल दर्पण द्वारा बना प्रतिबिम्ब की निम्न विशेषताएँ होती हैं-
⦁ वस्तु और प्रतिबिम्ब की दूरी दर्पण से सदैव बराबर होगी।
⦁ प्रतिबिम्ब, सीधा और आभासी होता है।
⦁ इसको पर्दे पर नहीं किया जा सकता है।
⦁ आकार में प्रतिबिम्ब वस्तु के समान आकार का ही होगा।
पार्श्व परावर्तन- प्रतिबिम्ब में वस्तु की दिशा-परिवर्तन को पार्श्व परिवर्तन कहते हैं। इसमें वस्तु का दाँया भाग प्रतिबिम्ब में बाँया भाग दिखाई देता है तथा उसका बाँया भाग दाँया भाग दिखाई देता है।
उदाहरण— यदि एक कागज पर P लिखकर समतल दर्पण की ओर करते हैं हमें दर्पण में दिखाई देता है, इसे पार्श्व परावर्तन कहते हैं।

दर्पण : यह एक चमकीला और अधिक पॉलिश किया हुआ परावर्तक पृष्ठ होता है जो अपने सामने रखी वस्तु का प्रतिबिम्ब बनाता है| दर्पण दो प्रकार का होता है|
⦁ समतल दर्पण :- इसका परावर्तक पृष्ठ सीधा तथा सपाट होता है|
परिभाषा :- ऐसे दर्पण जिनका परावर्तक पृष्ठ समतल हो समतल दर्पण कहलाता है|

समतल दर्पण का उपयोग :-
⦁ इसका उपयोग घरों में चेहरा देखने के लिए किया जाता है|
⦁ सैलून तथा ब्यूटी पारलर आदि में किया जाता है|
समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब की प्रकृति :
इसके द्वारा बना प्रतिबंब आभासी और सीधा होता है| तथा प्रतिबिंब दर्पण के पीछे उतनी दुरी पर बनता है जीतनी दुरी पर बिंब दर्पण के सामने रखा होता है
⦁ गोलीय दर्पण :- इसका परावर्तक पृष्ठ वक्र (मुड़ा हुआ) होता है| गोलीय दर्पण का परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर या बाहर की ओर वक्रित हो सकता है|

परिभाषा : ऐसे दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ गोलीय होता है, गोलीय दर्पण कहलाता है|
इसी वक्रता के आधार पर गोलीय दर्पण दो प्रकार का होता है|

गोलीय दर्पण – ऐसे दर्पण जिनके परावर्तक पृष्ठ गोलीय होते हैं, गोलीय दर्पण कहलाते हैं।
गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं-
(i) उत्तल दर्पण
(ii) अवतल दर्पण

(i) अवतल दर्पण :-  वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ अन्दर की ओर अर्थात् गोले के केन्द्र की ओर वक्रित हो, अवतल दर्पण कहलाता हैं।
(ii) उत्तल दर्पण :- वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित होता हैं, उत्तल दर्पण कहलाता हैं।

i. वक्रता बिन्दु या वक्रता केन्द्र :- गोलीय दर्पण का केन्द्र बिन्दु को वक्रता बिन्दु या वक्रता केन्द्र कहते हैं। इसे ‘C’ से प्रदर्शित करते हैं।

ii. दर्पण का ध्रुव :- गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केन्द्र को दर्पण का ध्रुव कहलाता हैं।
 

इसे ‘P’ से प्रदर्शित करते हैं।
(iii) वक्रता त्रिज्या:- गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ का केन्द्र (ध्रुव) व गोलीय दर्पण का केन्द्र (वक्रता केन्द्र) के बीच की दूरी को वक्रता त्रिज्या (R) कहते हैं।

⦁ ध्रुव (P) व वक्रता केन्द्र (C) के बीच की दूरी
⦁ वक्रता त्रिज्या को ‘R’ से प्रदर्शित करते हैं।
(iv) मुख्य अक्ष :– गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ का केन्द्र (P) व गोलीय दर्पण का केन्द्र (C) को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा “मुख्य अक्ष” कहलाती हैं।

(v) मुख्य फोकस या फोकस बिन्दु :- जब प्रकाश की किरण मुख्य अक्ष के समान्तर होती है तो दर्पण से परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु से गुजरती है, उसे मुख्य फोकस या फोकस बिन्दु कहा जाता हैं।
इसको ‘F’ से प्रदर्शित किया जाता हैं।

(vii) फोकस दूरी (f) :- गोलीय दर्पण के ध्रुव (P) व मुख्य फोकस (F) के बीच की दूरी को फोकस दूरी कहा जाता हैं।
फोकस दूरी को ‘f’ से प्रदर्शित किया जाता हैं।

(Viii) द्वारक:- गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के वृत्ताकार सीमा (किनारे) को द्वारक कहा जाता हैं। जैसे M व N

प्रतिबिम्ब की स्थिति, प्रकृति एवं आकार :-
बिम्ब की स्थिति :- वह स्थान जहाँ वस्तु रखी गई है|
प्रतिबिम्ब की स्थिति :- वह स्थान जहाँ दर्पण द्वारा प्रतिबिम्ब बना है|
प्रतिबिम्ब की साइज़ :- यह प्रतिबिम्ब का आकार है जो यह बताता है कि वस्तु का प्रतिबिम्ब वस्तु से छोटा बना है, बराबर बना है या वस्तु से बड़ा बना है|
प्रतिबिम्ब की प्रकृति :- प्रतिबिम्ब की प्रकृति से यह ज्ञात होता है कि दी गई वस्तु का दर्पण द्वरा बनाया गया प्रतिबिम्ब कैसा है आभासी या वास्तविक और सीधा या उल्टा|
प्रतिबिम्ब की प्रकृति दो प्रकार का होता है| :-
⦁ वास्तविक और उल्टा :- यह प्रतिबिम्ब सदैव दर्पण के सामने एवं उल्टा बनता है|
⦁ आभासी और सीधा :- यह प्रतिबिम्ब सदैव दर्पण के परदे के पीछे एवं सीधा बनता है|

सिद्व कीजिए कि छोटे द्वारक के अवतल दर्पण की वक्रता त्रिज्या फोकस से दो गुनी होती हैं।
अथवा
वक्रता त्रिज्या (R) व फोकस दूरी (f) में सम्बन्ध-

परावर्तन के नियम से,
R = 2 f
R2=f
वक्रता त्रिज्या फोकस दूरी की दो गुनी होती हैं।
उदाहरण- जब किसी उत्तल दर्पण की फोकस दूरी (f) 8 सेमी है, तो वक्रता त्रिज्या ज्ञात कीजिए।
उत्तर- फोकस दूरी (f) = 8 सेमी.
वक्रता त्रिज्या (R) =??
R = 2f
R = 2 × 8
R = 16 सेमी.
उदाहरण- किसी दर्पण की वक्रता त्रिज्या (R) 40 सेमी हैं तो फोकस दूरी (f) ज्ञात कीजिए।
उत्तर-

कार्तीय चिह्न परिपाटी

⦁ बिम्ब दर्पण के बायीं और रखा जाता हैं।
⦁ मुख्य अक्ष के समान्तर सभी दूरियाँ दर्पण के ध्रुव से मापी जाती हैं।
⦁ मुख्य अक्ष के समान्तर मूल बिन्दु के दायीं और की दूरियाँ (× – अक्ष के अनुदिश )धनात्मक ली जाती हैं तथा बायीं और की दूरियाँ (- × अक्ष के अनुदिश) ऋणात्मक ली जाती हैं।
⦁ मुख्य अक्ष के लम्बवत् ऊपर की और दूरियाँ (+y अक्ष के अनुदिश) धनात्मक तथा मुख्य अक्ष के लम्बवत् नीचे की और दूरियाँ (-y अक्ष के अनुदिश) ऋणात्मक ली जाती हैं।
गोलीय दर्पण से प्रतिबिम्ब का निर्माण :
नियम :
(1) अक्ष के समान्तर किरण

जब कोई प्रकाश की किरण मुख्य अक्ष के समान्तर होती है तो दर्पण से परावर्तन के बाद मुख्य फोकस से गुजरती है या गुजरती हुई प्रतीत होती है।
(2) फोकसीय किरण :

जब प्रकाश की किरण मुख्य फोकस से गुजरती है तो दर्पण से परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती है।
(3) अभिलम्ब किरण :

जब प्रकाश की किरण वक्रता बिन्दु से गुजरती है तो परावर्तन के बाद वापस उसी पथ पर पुन: लौट जाती है अर्थात् कोई परिवर्तन नहीं होता है।
(4) तिर्यक किरण :

जब प्रकाश की किरण किसी माध्यम में गोलीय दर्पण के परावर्तक पृष्ठ के केन्द्र (ध्रुव) पर आपतित होती है तो परावर्तन के बाद वापस उसी कोण से उसी माध्यम में लौट जाती है।

उत्तल दर्पण से प्रतिबिम्ब निर्माण :-

(i) वस्तु ∞ पर है-

प्रतिबिम्ब → मुख्य फोकस (F)
विशेषताएँ → आभासी, सीधा व बहुत छोटा
(ii) वस्तु ∞ को छोडकर कहीं पर भी हो –

प्रतिबिम्ब — ध्रुव व मुख्य फोकस के मध्य
विशेषताएँ — आभासी, सीधा व छोटा
उपयोग-
वाहनों के पश्च दर्पण में — पीछे आने वाले वाहन को ड्राइवर आसानी से देख सकता है क्योंकि उत्तल दर्पण आभासी, सीधा व छोटा प्रतिबिम्ब बनाता है।
अवतल दर्पण  से प्रतिबिम्ब निर्माण ⇒

अवतल दर्पण के उपयोग:-
⦁ टॉर्च व सर्चलाईट में।
⦁ सौर भट्टियों में।
⦁ दंत चिकित्सक दाँतों को बड़ा करके देखने के लिए।
⦁ वाहनों के अग्रदीप (हैडलाईट्स) में ।
दर्पण सूत्र :-
फोकस दूरी (f),बिम्ब दूरी (u) व प्रतिबिम्ब दूरी (v) में सम्बन्ध –

f = फोकस दूरी
(ध्रुव व प्रतिबिम्ब के बीच की दूरी)
v = प्रतिबिम्ब दूरी
(ध्रुव व प्रतिबिम्ब  के बीच की दूरी)
u = बिम्ब दूरी
(ध्रुव व बिम्ब के बीच की दुरी)
1v+1u=1f दर्पण सूत्र

आवर्धन – प्रतिबिम्ब की ऊँचाई व बिम्ब की ऊँचाई के अनुपात को आवर्धन कहते हैं।
इसे ‘m’ से प्रदर्शित करते हैं।

उदाहरण – एक व्यक्ति का चेहरा शेविंग दर्पण से 20 cm हैं, यदि शेविंग दर्पण की फोकस दूरी 80 cm है तो बनने वाले प्रतिबिम्ब की दर्पण से दूरी एवं आवर्धनता ज्ञात कीजिए।
शेविंग दर्पण (अवतल दर्पण)
बिम्ब दूरी (u) = – 20 सेमी.
फोकस दूरी (f) = – 80 सेमी.
प्रतिबिम्ब दूरी (v) = ??

उदाहरण – एक उत्तल दर्पण की फोकस दूरी 30 सेमी हैं। यदि एक बिम्ब का आभासी प्रतिबिम्ब दर्पण से 20 सेमी दूरी पर बनता है तो दर्पण से बिम्ब की दूरी ज्ञात कीजिए।
उत्तल दर्पण में,
फोकस दूरी (f) = + 30 cm
प्रतिबिम्ब दूरी (v) = + 20 cm
बिम्ब की दूरी (u) =

प्रकाश का अपवर्तन 
जब कोई प्रकाश की किरण एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करती हैं तो अपने पथ से विचलित हो जाती हैं, उसे “प्रकाश का अपवर्तन नियम” कहते हैं।
माध्यम दो प्रकार के होते हैं –

  1. सघन माध्यम
  2. विरल माध्यम

(i) जब प्रकाश की किरण  (सघन माध्यम से विरल माध्यम)

जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो अपवर्तन के बाद अभिलम्ब से दूर हो जाती हैं।
(ii) जब प्रकाश की किरण (विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश)

जब प्रकाश की किरण विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है तो अपवर्तन के बाद अभिलम्ब के पास आ जाती है अथवा  अभिलम्ब की और झुक जाती हैं।
अपवर्तन की घटना के कारण
⇒ पानी में रखी हुई पेन्सिल मुडी हुई दिखाई देती हैं।
⇒ पानी में रखा हुआ सिक्का ऊपर ऊठा हुआ दिखाई देता हैं।

अपवर्तन की घटना में –
⇒ प्रकाश की चाल परिवर्तित हो जाती है।
⇒ प्रकाश का वेग परिवर्तित हो जाता है।
⇒ प्रकाश का तरंगर्देर्ध्य परिवर्तित हो जाता है।
⇒ आवृति में कोई परिवर्तन नहीं होता हैं।
⇒ निर्वात् / वायु में प्रकाश की चाल = 3 × 108 m/s

अपवर्तनांक

अपवर्तनांक मात्रकहीन (unitless) होता है।
पहला नियम – आपतित किरण, अभिलम्ब, अपवर्तित किरण तीनों एक ही तल में स्थित होते हैं।

दूसरा नियम (स्नैल का नियम) – स्नैल के नियमानुसार किसी माध्यम के लिए आपतन कोण (i) की ज्या व अपवर्तन कोण (r) की ज्या का अनुपात सदैव स्थिर (नियत) होता है, इसे स्नैल का नियम कहा जाता है।

प्रश्न :- किसी माध्यम मे प्रकाश की चाल = 2×108 m/s है तो वायु के सापेक्ष अपवर्तनांक ज्ञात कीजिए।
(वायु में प्रकाश की चाल = 3×108 m/s)
उत्तर – माध्यम मे प्रकाश की चाल = 2×108 m/s
वायु में प्रकाश की चाल = 3×108 m/s

n=3×108 m/s2×108 m/s
अपवर्तन के उदाहरण:-

  1. पानी से भर गिलास में रखी पेंसिल का मुड़ी हुई दिखाई देना: पानी से भरे गिलास में डूबी पेंसिल से प्रकाश को जो भाग नेत्र तक पहुँचता है वह पानी के बाहर वाले भाग से आने वाले प्रकाश से भिन्न दिशा में आता हुआ प्रतीत होता है। अत: पेंसिल दोनों माध्यमों को पृथक् करने वाले तल पर मुड़ी हुई दिखती है।
  2. पानी से भरी गिलास में रखे सिक्के का ऊपर दिखाई देना या तली का ऊपर दिखाई देना: पानी से भरे गिलास में रखे सिक्के या तली से जो भाग नेत्र तक पहुँचता है वह पानी के बाहर वाले भाग से आने वाले प्रकाश से भिन्न दिशा में आता हुआ प्रतीत होता है। अत: सिक्का या तली अपने स्थान ऊपर दिखाई देती है।

गोलीय लैंस: दो पृष्ठों से गिरा हुआ पारदर्शी माध्यम जिसका एक या दोनों पृष्ठ गोलीय है लैंस कहलाता है। यह काँच या प्लास्टिक का बना होता है।
लैंस दो प्रकार के होते हैं।
(1) उत्तल लैंस            (2) अवलत लैंस

(1) उत्तल लैंस: वह लैंस जो किनारों से पतले एवं बीच में से मोटे होते हैं, उसे उत्तल लैंस कहते हैं। यह अपवर्तन के बाद किरणों को पास-पास लाते हैं, इसीलिए इसे अभिसारी लैंस कहते हैं।

ये तीन प्रकार के होते हैं।
उभयोत्तल: दोनों पृष्ठ उत्तल
समतलोत्तल: एक पृष्ठ उत्तल व दूसरा समतल
अवतलोत्तल: एक पृष्ठ अवतल व एक उत्तल

(2) अवतल लैंस: वह लैंस जो किनारों से मोटे व बीच में से पतले होते हैं, उसे अवतल लैंस कहते हैं।  यह समानान्तर किरणों को अपवर्तन के बाद अपसारित या दूर-दूर करते हैं, इसीलिए इसे अपसारी लैंस भी कहते हैं।

ये तीन प्रकार के होते हैं।
उभयावतल: दोनों पृष्ठ अवतल
समतलावतल: एक पृष्ठ समतल व दूसरा अवतल
उत्तलावतल: एक पृष्ठ उत्तल व दूसरा अवतल

मुख्य परिभाषाएँ:

(1) वक्रता केन्द्र: लैंस के गोलीय पृष्ठों को जिन गोलों का भाग मानते हैं। इन गोलों का केन्द्र वक्रता केन्द्र कहलाता है। लैंस में दो वक्रता केन्द्र C1 व C2 होते हैं।

(2) वक्रता त्रिज्या: लैंस जिन गोलों का भाग है, उनकी त्रिज्या लैंस की वक्रता त्रिज्या होती है। लैंस के जिस पृष्ठ पर प्रकाश आपतित होता है वह प्रथम पृष्ठ व जिससे प्रकाश निकलता है, वह द्वितीय पृष्ठ होता है। इन्हें क्रमश: R1 व R2  से दर्शाते हैं।
(3) मुख्य अक्ष: किसी लैंस के दोनों वक्रता केन्दों को मिलाने वाली काल्पनिक सीधी रेखा लैंस का मुख्य अक्ष कहलाता है।
(4) प्रकाशिक केन्द्र: लैंस के मुख्य अक्ष पर स्थित वह बिन्दु जहाँ से गुजरने वाली प्रकाश किरण बिना मुडे़ सीधे अपवर्तित हो जाती है। दोनों वक्रता त्रिज्या समान होने पर लैंस का केन्द्रीय बिन्दु ही प्रकाशिक केन्द्र होता है। इसे O से प्रदर्शित करते हैं।

(5) मुख्य फोकस: लैंस पर मुख्य अक्ष के समांतर आपतित प्रकाश किरणें लैंस से अपवर्तन के पश्चात‌् मुख्य अक्ष के जिस बिन्दु पर मिलती है (उत्तल लैंस) अथवा जिस बिन्दु से आती हुई प्रतीत होती है (अवतल लैंस) उसे लैंस का मुख्य फोकस कहते है। बाई ओर F1 तथा दांई ओर F2 से दर्शाते हैं।

(6) फोकस दूरी – लैंस के मुख्य फोकस व प्रकाशिक केन्द्र के बीच की दूरी फोकस दूरी कहलाती है। इसे f से प्रदर्शित करते हैं।
(7) फोकस तल- मुख्य अक्ष के लम्बवत‌् ऐसा तल जो फोकस बिन्दु से गुजरता है, फोकस तल कहलाता है।

गोलीय लैंस के नियम

(i) मुख्य अक्ष के समांतर
जब कोई प्रकाश की किरण मुख्य अक्ष के समांतर होती है तो लैंस से अपवर्तन के बाद मुख्य फोकस से गुजरती है या गुजरती हुई प्रतीत होती है।

(ii) फोकसीय किरण
जब कोई प्रकाश की किरण मुख्य फोकस (F) से गुजरती है तो लैंस से अपवर्तन के बाद मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती है।

(iii) प्रकाशिक केन्द्
जब कोई प्रकाश की किरण प्रकाशिक केन्द्र (O) से गुजरती है तो लैंस से अपवर्तन के बाद बिना विचलित हुए सीधी निकल जाएगी।

अवतल लैन्स से प्रतिबिम्ब निर्माण –

  1. वस्तु अनन्त पर हो- अनन्त से आने वाली किरणे अवतल लैंस से अपवर्तन के पश्चात् अपसारित हो जाती है, जिन्हें पीछे बढ़ाने पर बिम्ब का आभासी, अत्यधिक छोटा एवं सीधा प्रतिबिंब फोकस अथवा फोकस तल पर बनता है।
  2. जब बिम्ब सीमित दूरी पर हो-
    यदि बिम्ब अवतल लैंस से किसी सीमित दूरी पर हो (अनंत व प्रकाशिक केन्द्र के बीच) तो बिम्ब का आभासी, सीधा एवं बिम्ब से छोटा प्रतिबिम्ब बनता है।

उत्तल लैंस से प्रतिबिंब निर्माण:

(i) अनन्त पर

 
 
 
(ii) अनन्त व 2F1 के बीच

 
 
(iii) 2F1 पर

(iv) 2F1 व F1 के बीच

(v) F1 पर

(vi) F1 व प्रकाशिक केन्द्र के बीच

गोलीय लैंस में बिम्ब दूरी, प्रतिबिम्ब दूरी व फोकस दूरी में सम्बन्ध –

बिंब की प्रकाशिक केन्द्र से दूरी = u
प्रतिबिंब की प्रकाशिक केन्द्र से दूरी = v
मुख्य फोकस की प्रकाशिक केन्द्र से दूरी  = f
राशि अवतल लैंस उत्तल लैंस
बिंब की प्रकाशिक केन्द्र से दूरी (u) -ve -ve
प्रतिबिंब की प्रकाशिक केन्द्र से दूरी (v) -ve +ve
-ve (आभासी)
मुख्य फोकस की प्रकाशिक केन्द्र से दूरी (f) या फोकस दूरी -ve +ve
आवर्धन सूत्र (m): – लैंस द्वारा बिम्ब को आवर्धित करने की क्षमता आवर्धनता कहलाती है।
प्रतिबिंब की ऊँचाई और बिंब की ऊँचाई के अनुपात को आवर्धन कहते हैं।
बिम्ब की ऊँचाई  = h
प्रतिबिंब की ऊँचाई  = h’

प्रतिबिंब सीधा हो तो प्रतिबिंब ऊँचाई  – धनात्मक
प्रतिबिंब उल्टा हो तो प्रतिबिंब ऊँचाई – ऋणात्मक
वास्तविक एवं उल्टे प्रतिबिंब का आवर्धन – ऋणात्मक
आभासी एवं सीधे प्रतिबिंब का आवर्धन – धनात्मक
उत्तल लैंस व अवतल लैंस में अंतर : –
क्र सं उत्तल लैंस अवतल लैंस

  1. यह बीच में से मोटा होता है व किनारों से पतला होता है। यह बीच में से पतला व  किनारों से मोटा होता है।
  2. यह प्रकाश किरणों को एक बिन्दु पर केन्द्रित करता है। यह प्रकाश किरणों को फैला देता है।
  3. इससे वास्तविक तथा आभासी प्रतिबिंब बनते हैं। यह केवल आभासी प्रतिबिंब बनाता है।
  4. इसके द्वारा बिम्ब से छोटे बराबर तथा बड़े प्रतिबिम्ब बनते हैं। यह सदैव बिम्ब से छोटा प्रतिबिंब बनाता है

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