upbord class10 hindi हिंदी व्याकरण –
1. स्थायी भाव –
प्रत्येक मनुष्य के चित्त में प्रेम, दुःख, क्रोध, आश्चर्य, उत्साह आदि भाव स्थायी रूप से विद्यमान रहते हैं, उन्हें ही स्थायी भाव कहते हैं। स्थायी भाव हमारे हृदय में छिपे होते हैं तथा ये अनुकूल वातावरण उपस्थित होने पर स्वयं ही जाग्रत हो उठते हैं।
2. विभाव –
विभाव से अभिप्राय उन वस्तुओं एवं विषयों के वर्णन से है, जिनके प्रति सहृदय के मन में किसी प्रकार का भाव या संवेदना जागृत होती है अर्थात् भाव के जो कारण होते हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव दो प्रकार के होते हैं आलंबन और उद्दीपन।
(i) आलंबन विभाव जिन व्यक्तियों या पात्रों के आलंबन या सहारे से स्थायी भाव उत्पन्न होते हैं, वे आलंबन विभाव कहलाते हैं; जैसे-नायक-नायिका।
आलंबन के भी दो प्रकार हैं –
(क) आश्रय जिस व्यक्ति के मन में रति (प्रेम) करुणा, शोक आदि विभिन्न भाव उत्पन्न होते हैं, उसे आश्रय आलंबन कहते हैं।
(ख) विषय जिस वस्तु या व्यक्ति के लिए आश्रय के मन में भाव उत्पन्न होते हैं, उसे विषय आलंबन कहते हैं।
उदाहरण के लिए – यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जाग्रत होता है, तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय। उसी प्रकार यदि सीता के मन में राम के प्रति रति भाव उत्पन्न हो, तो सीता आश्रय और राम विषय होंगे।
(ii) उद्दीपन विभाव – आश्रय के मन में उत्पन्न हुए स्थायी भाव को और तीव्र करने वाले विषय की बाहरी चेष्टाओं और बाह्य वातावरण को उद्दीपन विभाव कहते हैं।
उदाहरण के लिए – दुष्यंत शिकार खेलते हुए ऋषि कण्व के आश्रम में पहुंच जाते हैं। वहाँ वे शकुंतला को देखते हैं। शकुंतला को देखकर दुष्यंत के मन में आकर्षण या रति भाव उत्पन्न होता है। उस समय शकुंतला की शारीरिक चेष्टाएँ दुष्यंत के मन में रति भाव को और अधिक तीव्र करती हैं। नायिका शकुंतला की शारीरिक चेष्टाएँ तथा वन प्रदेश के अनुकूल वातावरण को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।
3. अनुभाव –
अनु का अर्थ है-पीछे अर्थात् बाद में। स्थायी भाव के उत्पन्न होने पर उसके बाद जो भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें अनुभाव कहा जाता है।
अनुभाव चार प्रकार के होते हैं –
(i) सात्विक जो अनुभाव मन में आए भाव के कारण स्वतः प्रकट हो जाते हैं, वे सात्विक हैं।
(ii) कायिक शरीर में होने वाले अनुभाव कायिक हैं।
(iii) वाचिक काव्य में नायक अथवा नायिका द्वारा भाव-दशा के कारण वचन में आए परिवर्तन को वाचिक अनुभाव कहते हैं।
(iv) आहार्य नायक-नायिका की वेशभूषा द्वारा भाव प्रदर्शन आहार्य अनुभाव कहलाते हैं।
4. संचारी या व्यभिचारी भाव
मन के चंचल या अस्थिर विकारों को संचारी भाव कहते हैं। स्थायी भाव के बदलने पर ये भाव परिवर्तित होते रहते हैं, इनका नाम ‘संचारी भाव’ रखे जाने के पीछे यही कारण भी है। संचारी भावों को व्यभिचारी भाव भी कहा जाता है।
उदाहरण के लिए – शकुंतला के प्रति रति भाव के कारण उसे देखकर दुष्यंत के मन में मोह, हर्ष, आवेग आदि जो भाव उत्पन्न होंगे, उन्हें संचारी भाव कहेंगे।
संचारी भावों की संख्या तैंतीस (33) बताई गई है। इनमें से मुख्य संचारी भाव हैं-शंका, निद्रा, मद, आलस्य, दीनता, चिंता, मोह, स्मृति, धैर्य, लज्जा, चपलता, आवेग, हर्ष, गर्व, विषाद, उत्सुकता, उग्रता, त्रास आदि।
रस | स्थायी भाव | संचारी भाव |
शृंगार | रति | स्मृति, हर्ष, मोह आदि |
हास्य | हास | हर्ष, चपलता, लज्जा आदि |
करुण | शोक | ग्लानि, शंका, चिंता आदि |
रौद्र | क्रोध | उग्रता, क्रोध आदि |
वीर | उत्साह | आवेग, गर्व आदि |
भयानक | भय | डर, शंका, चिंता आदि |
बीभत्स | जुगुप्सा (घृणा) | दीनता, निर्वेद, घृणा आदि |
अद्भुत | विस्मय | हर्ष, स्मृति, घृणा आदि |
शांत | निर्वेद (वैराग्य) | हर्ष, प्रसन्नता, विस्मय आदि |
वात्सल्य | वत्सल | वत्सलता, हर्ष आदि |
भक्ति | अनुराग/ईश्वर, विषयक रति | हर्ष, गर्व, निर्वेद, औत्सुक्य आदि |
रस के भेद
रस के मुख्यतः नौ भेद होते हैं। बाद के आचार्यों ने दो और भावों को स्थायी भाव की मान्यता देकर रसों की संख्या ग्यारह बताई है। ये रस निम्नलिखित हैं –
1. श्रृंगार रस
जब नायक – नायिका के मन में एक-दूसरे के प्रति प्रेम (लगाव) उत्पन्न होकर विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के योग से स्थायी भाव रति जाग्रत हो, तो ‘शृंगार रस’ कहलाता है। इसे ‘रसराज’ भी कहा जाता है। इसका स्थायी भाव रति (प्रेम) है।
इसके दो भेद होते हैं
(i) संयोग शृंगार (ii) वियोग अथवा विप्रलंभ श्रृंगार
(i) संयोग श्रृंगार नायक व नायिका का मिलन संयोग शृंगार कहलाता है।
उदाहरण
“तन संकोच मन परम उछाहू। गूढ प्रेम लखि परह न काहू।।
जाइ समीप रामछवि देखी। रहि जनु कुँआरि चित्र अनुरेखी।”
स्थायी भाव रति
आश्रय नायिका अर्थात् सीताजी
विषय नायक अर्थात् श्रीराम
उद्दीपन समीप जाना, छवि देखना
संचारी भाव सीताजी का जड़वत् रह जाना।
(ii) वियोग शृंगार जहाँ नायक और नायिका के वियोग का वर्णन हो, वहाँ ‘वियोग शृंगार’ होता है।
उदाहरण
“विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!
वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास;
अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात!
जीवन, विरह का जलजात!”
स्थायी भाव रति (प्रिया वियोग)
आश्रय नायिका
विषय नायक
उद्दीपन नायक से दूरी
अनुभाव वेदना, पीड़ा अनुभव करना
संचारी भाव विलाप करना, रोना आदि।
2. करुण रस
जब प्रिय या मनचाही वस्तु के नष्ट होने या उसका कोई अनिष्ट होने पर हृदय शोक से भर जाए, तब ‘करुण रस’ जाग्रत होता है।
उदाहरण
“मेरे हृदय के हर्ष हा!
अभिमन्यु अब तू है कहाँ?”
स्थायी भाव शोक
आश्रय द्रौपदी
विषय अभिमन्यु
उद्दीपन शोकाकुल वातावरण
अनुभाव रोना, विलाप करना
संचारी भाव द्रौपदी का अभिमन्यु को याद करना, बीच-बीच में जड़ हो जाना आदि।
3. वीर रस
युद्ध अथवा किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में निहित ‘उत्साह‘ स्थायी भाव के जाग्रत होने के प्रभावस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है, उसे ‘वीर रस’ कहा जाता है।
उदाहरण
“चढ़त तुरंग, चतुरंग साजि सिवराज,
चढ़त प्रताप दिन-दिन अति जंग में।
भूषण चढ़त मरहट्अन के चित्त चाव,
खग्ग खुली चढ़त है अरिन के अंग में।
भौंसला के हाथ गढ़ कोट हैं चढ़त,
अरि जोट है चढ़त एक मेरु गिरिसुंग में।
तुरकान गम व्योमयान है चढ़त बिनु
मन है चढ़त बदरंग अवरंग में।।”
स्थायी भाव उत्साह
आश्रय शिवराज
विषय औरंगजेब और तुरक
उद्दीपन शत्रु का भाग जाना, मर जाना
अनुभाव घोड़ों का चढ़ना, सेना सजाना, तलवार चलाना
संचारी भाव उग्रता, क्रोध, चाव, उत्साह आदि।