🏔️ मालवथ पूर्णा: संघर्ष से शिखर तक की प्रेरक कहानी
✨ प्रस्तावना
कभी-कभी ज़िंदगी हमें ऐसी कहानियाँ देती है जो न सिर्फ़ दिल को छू जाती हैं बल्कि हमें अपनी सीमाओं से बाहर निकलने का हौसला भी देती हैं। ऐसी ही एक कहानी है मालवथ पूर्णा की – जो तेलंगाना के एक छोटे से गाँव से निकलकर दुनिया की सबसे ऊँची चोटी माउंट एवरेस्ट तक पहुँचीं।
पूर्णा ने 13 साल की उम्र में वो काम कर दिखाया, जो बड़े-बड़े खिलाड़ियों और पर्वतारोहियों के लिए भी सपना होता है। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि गरीबी, संसाधनों की कमी या सामाजिक हालात कभी भी किसी इंसान के सपनों को छोटा नहीं कर सकते।
🌱 प्रारंभिक जीवन
- मालवथ पूर्णा का जन्म 10 जून 2000 को तेलंगाना के नलगोंडा जिले के पकाला गाँव में हुआ।
- उनका परिवार बेहद साधारण किसान परिवार था।
- बचपन से ही गरीबी, अभाव और संघर्ष उनके जीवन का हिस्सा रहे।
- स्कूल जाने का रास्ता कठिन था, लेकिन पढ़ाई के प्रति उनका जुनून ग़ज़ब का था।
🎒 शिक्षा और स्कूली जीवन
- पूर्णा को गुरुकुल स्कूल में शिक्षा मिली, जहाँ उनके व्यक्तित्व को आकार देने में बड़ा योगदान रहा।
- वहाँ पर डॉ. आर.एस. प्रसाद जैसे शिक्षकों ने उन्हें न सिर्फ़ पढ़ाई बल्कि खेल और एडवेंचर में भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया।
- स्कूल में आयोजित खेलकूद और स्पोर्ट्स कैम्प्स ने उनकी ज़िंदगी का रुख़ बदल दिया।
🧗 पर्वतारोहण की ओर पहला कदम
- 2013 में उन्हें सामाजिक कल्याण आवासीय शैक्षिक संस्थान सोसायटी (TSWREIS) द्वारा आयोजित एडवेंचर कैंप में भेजा गया।
- वहीं उन्होंने पहली बार रॉक क्लाइम्बिंग की और उनके भीतर पर्वतारोहण के प्रति जज़्बा जागा।
- ट्रेनिंग के दौरान उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ा कि प्रशिक्षकों ने महसूस किया कि यह बच्ची कुछ बड़ा कर सकती है।
🏔️ एवरेस्ट अभियान की शुरुआत
- एवरेस्ट चढ़ाई के लिए उन्हें दिल्ली और दार्जिलिंग के पर्वतारोहण संस्थानों से प्रशिक्षित किया गया।
- उन्होंने खड़गपुर और दार्जिलिंग की पहाड़ियों पर अभ्यास किया।
- कठिन परिस्थितियों, ठंडी हवाओं और बर्फीली चोटियों से लड़ते हुए उन्होंने अपने शरीर और मन को तैयार किया।
🌨️ एवरेस्ट पर चढ़ाई
- मई 2014 में, मालवथ पूर्णा ने नेपाल से एवरेस्ट अभियान शुरू किया।
- यह चढ़ाई आसान नहीं थी – ऑक्सीजन की कमी, बर्फ़ीले तूफ़ान, खतरनाक रास्ते और मौत का डर हर कदम पर था।
- लेकिन हिम्मत और जज़्बे के दम पर उन्होंने हार नहीं मानी।
- 25 मई 2014 को सुबह 6 बजे, 13 साल 11 महीने की उम्र में, उन्होंने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहराया।
- इस तरह वे एवरेस्ट फतह करने वाली दुनिया की सबसे कम उम्र की लड़की (13 वर्ष की आयु में) बन गईं
- ।
🏅 उपलब्धियाँ और सम्मान
- एवरेस्ट फतह के बाद मालवथ पूर्णा का नाम इतिहास में दर्ज हो गया।
- उन्हें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया।
- भारत सरकार और तेलंगाना सरकार ने उन्हें विशेष पुरस्कारों से नवाज़ा।
- उनकी उपलब्धि पर आधारित फ़िल्म “Poorna: Courage Has No Limit” (निर्देशक: राहुल बोस) 2017 में रिलीज़ हुई, जिसने उनकी कहानी को और लोगों तक पहुँचाया।
💪 संघर्ष और चुनौतियाँ
- गरीबी और अभाव सबसे बड़ी चुनौती थे।
- गाँव में कई लोग मानते थे कि लड़कियों को बड़े सपने नहीं देखने चाहिए।
- लेकिन पूर्णा ने इन सामाजिक बाधाओं को तोड़ा और साबित किया कि सपनों की कोई जाति या लिंग नहीं होता।
🌍 मालवथ पूर्णा की प्रेरक सीख
- सपनों की कोई सीमा नहीं होती।
- संघर्ष ही सफलता का रास्ता है।
- मंज़िल उन्हीं को मिलती है जिनके हौसले बुलंद होते हैं।
- परिवार और गुरु का साथ हो तो नामुमकिन भी मुमकिन बन जाता है।
📌 निष्कर्ष
मालवथ पूर्णा की कहानी केवल एवरेस्ट चढ़ाई की नहीं है, बल्कि यह उस जज़्बे की कहानी है जो हर बच्चे, हर युवा और हर इंसान के भीतर सोया होता है।
उनकी यात्रा हमें यह सिखाती है कि अगर इरादे मज़बूत हों, तो छोटी सी उम्र और छोटे से गाँव से निकली लड़की भी पूरी दुनिया को यह बता सकती है कि —
“Courage has no limit!”