कक्षा 10 विज्ञान नोट्सChapter 2 अम्ल, क्षार एवं लवण

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कक्षा 10 विज्ञान नोट्स
Chapter 2 अम्ल, क्षार एवं लवण
अम्ल
उत्पति :- अम्ल को अंग्रेजी में एसिड कहते हैं, जो कि लैटिन भाषा के शब्द एसिड्स से बना हैं ।
स्वाद :– अम्ल स्वाद में खट्टे होते हैं । उदाहरण – नीम्बु, संतरा, इमली ।
लिटमस पत्र :– अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देता हैं ।
विलायक क्षमता :- अम्ल की विलायक क्षमता उच्च होती हैं।
⦁ ये जलीय विलयन में H+ आयन देते हैं।

उदाहरण :-
हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) – अनेक उद्योगों में बॉयलर को अंदर से साफ करने में, सिंक व सेनिटरी को साफ करने में रूप से काम आता हैं ।
सल्फ्यूरिक अम्ल (H2SO4) – सेल, कार, बैटरी तथा उद्योगों में काम आता हैं । सल्फ्यूरिक अम्ल को अम्लों का राजा भी कहते हैं।
नाइट्रिक अम्ल (HNO3) – उर्वरक बनाने व सोने के गहनों को साफ करने में काम आता हैं ।
ऐसीटिक अम्ल (CH3COOH) – सिरके के रूप में खाद्य पदार्थो को, आचार आदि को संरक्षित करने में, लकड़ी के फर्नीचर आदि को साफ करने में काम आता हैं ।
क्षार –
उत्पति :– क्षार शब्द की उत्पति एलकली शब्द से हुई जिसका अर्थ ‘पौधे की राख’।
स्वाद :– यह स्वाद में कड़वा होता हैं। उदाहरण – नीम, बेकिंग सोडा।
लिटमस पत्र :- क्षार लाल लिटमस को नीला कर देता हैं ये स्पर्श में साबुन जैसा व्यवहार दिखाते हैं ।
विलायक क्षमता :- क्षार की विलायक क्षमता निम्न होती हैं ।
ये जलीय विलयन में OH– आयन देते हैं।
क्षार (Alkali) :– जल में घुलनशील क्षारक को क्षार कहते हैं।
उदाहरण :- 
सोडियम हाइड्रोक्साइड (NaOH) – प्रबल क्षारक के रूप में।
पौटेशियम हाइड्रोक्साइड (KOH) – प्रबल क्षारक के रूप में।
अमोनियम हाइड्रोक्साइड (NH4OH) – खाद्य या उर्वरक में ।
कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड Ca[OH]2 – मिट्टी की अम्लता को दूर करने में किया जाता हैं।
अम्ल और क्षार में अन्तर
क्र.स. अम्ल क्षार

  1. अम्ल स्वाद में प्राय: खट्‌टे होते हैं यह प्राय: स्वाद में कड़वे होते हैं।
  2. अम्ल जलीय विलयन में H+ आयन प्रदान करते हैं। क्षार जलीय विलयन में OH- आयन प्रदान करते हैं।
  3. अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल रंग में परिवर्तित कर देते हैं। क्षार लाल लिटमस पत्र को नीले रंग में परिवर्तित कर देते हैं।
  4. उदाहरण :- HCl, H2SO4, HNO3, CH3COOH उदाहरण :- NaOH, KOH, Ca(OH)2 व NH4OH

सूचक :– सूचक का शाब्दिक अर्थ होता हैं- ‘सूचना देने वाला’।
परिभाषा :-  वे पदार्थ जो विलयन में अम्ल या क्षार की उपस्थिति का पता लगाते हैं, उसे सूचक कहते हैं।
सूचक मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं। 
i. प्राकृतिक सूचक
ii. संश्लेषित या कृत्रिम सूचक

लिटमस :- लिटमस विलयन बैंगनी रंग का रंजक होता हैं जो थैलैफ़ाइटा समूह के लिचेन पौधे से निकाला जाता हैं।
संसूचक :- वे पदार्थ जो अपने रंग में परिवर्तन कर दुसरे पदार्थों के साथ अम्लीय या क्षारकीय व्यवहार करते हैं उन्हें संसूचक कहा जाता है

संसूचक के प्रकार : वैसे तो संसूचक बहुत प्रकार के होते है परन्तु इनके समान्य प्रकार इस प्रकार है :
प्राकृतिक संसूचक :- वे सूचक जो प्राकृतिक स्रोतों के प्राप्त होते है प्राकृतिक संसूचक कहलाते है | जैसे – लिटमस, हल्दी, चाइना रोज, लाल गोभी आदि| 

लिटमस :-  लिटमस विलयन बैंगनी रंग का रंजक होता है जो थैलाफाइटा समूह के लाईकेन के पौधे से निकला जाता है| लिटमस विलयन जब न तो अम्लीय होता है न ही क्षारकीय, तब इसका रंग बैगनी होता है

लिटमस पत्र दो रंगों का होता है – नीला एवं लाल| अम्ल नीले लिटमस पत्र को लाल कर देता  है जबकि क्षार लाल लिटमस पत्र को नीला कर देता है

हल्दी :– हल्दी भी एक अन्य प्रकार का प्राकृतिक सूचक है| यह पीला रंग का होता है, कई बार आपने देखा होगा जब किसी सफ़ेद कपड़ों पर सब्जी का दाग लग जाता है और जब इसे साबुन (क्षारीय प्रकृति) से धोते है तो यह उस दाग के धब्बे को भूरा – लाल कर देता है|
अम्ल के साथ हल्दी के रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता है|
⦁ क्षारक के साथ इसका रंग भूरा – लाल हो जाता है|

⦁ संश्लेषित संसूचक
:- ये वे सूचक है जो प्राकृतिक नहीं होते अपितु ये रसायनिक पदार्थों द्वारा बनाए गए होते है| जैसे – मेथिल ऑरेंज एवं फिनोल्फ्थेलीन आदि| इनका उपयोग अम्ल एवं क्षारक की जाँच के लिए होता है|
गंधीय संसूचक :– कुछ ऐसे पदार्थ होते हैं जिनकी गंध अम्लीय या क्षारकीय माध्यम में बदल जाती है| ऐसे पदार्थों को गंधीय सूचक कहते हैं| जैसे – वैनिला, प्याज एवं लौंग आदि|
सार्वत्रिक सूचक :- सार्वत्रिक सूचक अनेक सूचकों का मिश्रण होता है| लिटमस, मेथिल ऑरेंज एवं फिनोल्फ्थेलीन आदि जैसे सूचकों के उपयोग से किसी विलयन के केवल अम्लीय या क्षारीय प्रकृति का ही पता लगाया जा सकता है परन्तु इस 
सार्वत्रिक सूचक के प्रयोग से अम्ल या क्षारक की प्रकृति के साथ – साथ उनकी प्रबलता की माप का माप भी बताता है|

अम्ल व क्षारों के रासायनिक गुण :-
a) अम्ल की धातु के साथ अभिक्रिया :- अम्ल धातु के साथ क्रिया करके हाइड्रोजन गैस (H2) देते हैं। यही कारण है की खट्‌टे अम्लीय पदार्थ धातु के बर्तनों में नहीं रखे जाते हैं।
जैसे – पीतल के बर्तनों में दही नहीं रखा जाता हैं ।
कारण :- पीतल जो कि धातु हैं जो खट्टे पदार्थ जैसे दही से क्रिया करने पर विषैला लवण का निर्माण होता हैं जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थ हैं।

धातु की क्षार के साथ अभिक्रिया से भी लवण व हाइड्रोजन गैस ही बनती हैं परन्तु सभी धातुओं की क्षारों के साथ अभिक्रिया में H2 गैस नहीं बनती हैं ।        
पॉप टेस्ट :- जब किसी रासायनिक अभिक्रिया में परखनली से गैस निकलती है तो उसके पास जलती हुई मोमबत्ती ले जाने पर पट-पट की ध्वनि उत्पन्न होती है, इसे पॉप टेस्ट कहा जाता है, अत: निकलने वाली गैस हाइड्रोजन हैं।
b) अम्ल की धातु ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया – अम्ल धातु ऑक्साइड के साथ अभिक्रिया करके लवण और जल देते हैं अत: ये क्षारीय प्रकृति के होते हैं। क्षारों के साथ अधात्विक ऑक्साइड अभिक्रिया करके लवण और जल बनाते है अत: ये अम्लीय प्रकृति के होते हैं ।
अम्लों के साथ धात्विक ऑक्साइडों की अभिक्रिया :-
अम्ल + धातु  ऑक्साइड   ⟶    लवण + जल
2HCl     +      CuO    ⟶     CuCl2 + H2O
अधात्विक ऑक्साइड की क्षारों के साथ अभिक्रिया :-
अधात्विक ऑक्साइड+ क्षार  ⟶  लवण + जल
CO2+Ca[OH]2   ⟶  CaCO3 + H2O
उभयधर्मी ऑक्साइड :-
ऐसे धातु ऑक्साइड जो अम्लीय व क्षारीय दोनों प्रवृत्ति को दर्शाते हैं, उसे उभयधर्मी ऑक्साइड कहते हैं। उदाहरण – ZnO, BeO ,Al2O3
c) अम्ल की धातु कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया – अम्ल धातु कार्बोनेट के साथ अभिक्रिया करके लवण, जल तथा कॉर्बनडाई ऑक्साइड देते हैं।

चूने के पानी का टेस्ट :- कार्बनडाई ऑक्साइड को चूने के पानी से प्रवाहित करने पर पानी दूधिया हो जाता है।
Ca(OH)2(aq)  +   CO2(g)     ⟶      CaCO3     +   H2O
CaCO3 के विलयन में CO2 अधिक मात्रा में प्रवाहित करने पर जल की उपस्थिति में घुलनशील व पारदर्शी पदार्थ का निर्माण होता हैं जिस कारण सम्पूर्ण विलयन पारदर्शी बन जाता हैं ।
CaCO3 + H2O + CO2   ⟶     Ca(HCO3)2
                                                (जल में विलयशील)
चूना पत्थर, खडिया एवं संगमरमर, कैल्शियम कार्बोनेट के विविध रूप हैं। सभी धातु कार्बोनेट एवं हाइड्रोजन कार्बोनेट अम्ल के साथ अभिक्रिया करके लवण, जल, कॉर्बनडाई ऑक्साइड बनाते हैं।

अम्ल व क्षार में समानता
हम एक प्रयोग के द्वारा अम्ल व क्षार की समानता का अध्ययन करते हैं-
प्रयोग :- ग्लुकोज, ऐल्कोहोल, HCl व NaOH का विलयन लेते हैं। एक कॉर्क पर दो कीलें लगाकर कॉर्क को 100 ml बीकर में रख देते हैं। इन दोनों कीलों को 6 वोल्ट की बैटरी के दोनों सिरों के साथ एक बल्ब व कुंजी (स्विच) के माध्यम से जोड़ देते हैं। अब बीकर में थोड़ा तनु HCl डालकर विद्युत धारा प्रवाहित करते हैं।

निष्कर्ष:-

  1. ग्लुकोज के विलयन में बल्ब नहीं जलता हैं।
  2. एल्कोहॉल के विलयन में बल्ब नहीं जलता हैं।
  3. हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन में बल्ब जलता हैं।
  4. सोडियम हाइड्रॉक्साइड के विलयन में बल्ब जलता हैं।
    अत: हम देखते है कि ग्लुकोज व एल्कोहॉल विद्युत का चालन नहीं करते हैं। तथा हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के विलयन में H+ आयन उत्पन्न होता हैं तथा सोडियम हाइड्रॉक्साइड के विलयन में OH- आयन उत्पन्न होता हैं।
    आरेनियस संकल्पना :-अम्ल व क्षार की परिभाषा सर्वप्रथम 1884 ई. में आरेनियस ने इस प्रकार दी-
    • अम्ल – जो पदार्थ जलीय विलयन में अपघटित होकर हाइड्रोजन आयन देते हैं ‘अम्ल’ कहलाते हैं ।
  • जल की उपस्थिति में HCl में हाइड्रोजन आयन (H+) उत्पन्न होते हैं। जल की अनुपस्थिति में HCl अणुओं से H+ आयन  पृथक् नहीं हो सकते हैं।
    HCl + H2O   ⟶    H3O+  + Cl-
  • हाइड्रोजन आयन स्वतंत्र रूप में नहीं रह सकते लेकिन जल के अणुओं के साथ मिलकर रहते हैं। इसलिए हाइड्रोजन आयन को H+(aq) या हाइड्रोनियम आयन (H3O+) से दर्शाते हैं।
    H+  + H2O    ⟶    H3O+
  • क्षार 1– जो पदार्थ जलीय विलयन में अपघटित होकर हाइड्रॅाक्साइड आयन देते हैं, ‘क्षार’ कहलाते हैं ।
    किसी क्षारक को जल में मिलाने पर –
    NaOH(s)⟶H2ONa+(aq)+OH−(aq)
    KOH(s)⟶H2OK+(aq)+OH−(aq)
    अम्ल व क्षार जल में विलेय है। 
    तनु – विलयन में जल की मात्रा अधिक होती है तो उसे तनु कहते है। 
    सान्द्र – विलयन में जल की मात्रा कम होती है तो उसे सान्द्र कहा जाता है। 
    तनुकरण – अम्ल या क्षार में जल मिलाने पर आयन की सान्द्रता में प्रति इकाई आयतन में कमी आ जाती हैं , उसे तनुकरण कहते हैं।
    प्रबल अम्ल – वे पदार्थ जो जलीय विलयन में H+ आयन अधिक मात्रा में देते हैं उसे प्रबल अम्ल कहा जाता हैं । उदा. HCl, H2SO4 ,HNO3
    दुर्बल अम्ल – वे पदार्थ जो जलीय विलयन में H+ आयन कम मात्रा में देते हैं उसे दुर्बल अम्ल कहा जाता हैं । उदा. CH3COOH, H2CO3
    प्रबल क्षार – वे पदार्थ जो जलीय में OH- आयन अधिक मात्रा में देते हैं उसे प्रबल क्षार कहते हैं। उदा. NaOH, KOH
    दुर्बल क्षार – वे पदार्थ जो जलीय में OH- आयन कम मात्रा में देते हैं उसे दुर्बल क्षार कहते हैं। उदा. NH4OH, Mg[OH]2, Ca[OH]2

जलीय विलयन में अम्ल या क्षारक का क्या होता है?
जब एक परखनली में सोडियम क्लोराइड (NaCl) तथा सल्फ्यूरिक  अम्ल (H2SO4) की परस्पर क्रिया करवाते है तो हाइड्रोक्लोरिक (HCl) गैस बनती है। इस परखनली पर दो प्रकार के परीक्षण किये जाते है 

  1. शुष्क लिटमस पत्र ले जाने पर उसके रंग में कोई परिवर्तन नहीं होता है। 
  2. आर्द्र नीला लिटमस पत्र ले जाने पर उसका रंग परिवर्तित हो जाता है। 

अम्ल एवं क्षारक परस्पर कैसे अभिक्रिया करते है?

  • अम्ल व क्षार परस्पर क्रिया करके लवण व जल का निर्माण करते है, उसे उदासीनीकरण अभिक्रिया कहते है। 
  • अम्ल व क्षार एक – दूसरे के समस्त गुणों को नष्ट कर देते है, तथा उदासीन हो जाते है। 
    अम्ल + क्षार  ⟶  लवण + जल
    HCl + NaOH  ⟶  NaCl+ H2O
    pH स्केल :- किसी विलयन में उपस्थित हाइड्रोजन आयन की सांद्रता ज्ञात करने के लिए एक स्केल विकसित किया गया है जिसे pH स्केल कहते हैं|
    इस स्केल में 0 से 14 तक अंक अंकित रहते है जो किसी अम्ल या क्षारक की प्रबलता और दुर्बलता के साथ-साथ उनके मान की बताता है| यह एक प्रकार का सार्वत्रिक सूचक होता है|

हाइड्रोनियम आयन की सांद्रता जीतनी अधिक होगी उसका pH उतना ही कम होगा|
किसी भी उदासीन विलयन के pH का मान 7 होगा|
⦁ यदि pH स्केल में किसी विलयन का मान 7 से कम है तो यह अम्लीय होगा|
7 से कम होने पर H+ आयन की सांद्रता बढती है| अर्थात अम्ल की शक्ति बढ़ रही है|
यदि pH का मान 7 से अधिक है वह क्षार होगा| 7 से अधिक होने पर OH-
की की सांद्रता बढती है अर्थात क्षारक की शक्ति बढ़ रही है|
प्रबल अम्ल :- जिस विलयन में अधिक संख्या में H+ आयन उत्पन्न करने वाले अम्ल प्रबल अम्ल कहलाते हैं|
दुर्बल अम्ल :- जबकि कम H+ आयन उत्पन्न करने वाले अम्ल दुर्बल अम्ल कहलायेंगे| जिस विलयन में OH- आयन अधिक संख्या में होते हैं उसे प्रबल क्षारक कहते हैं|
दुर्बल क्षारक :- जिस विलयन में OH- संख्या में होते हैं उन्हें दुर्बल क्षारक कहते हैं|
हमारा रक्त 7.35 – 7.45 pH परास के बीच कार्य करता है जो औसतन pH मान 7.4 होता है|
यदि रक्त का pH मान 7.45 से अधिक हो जाता है ऐसी अवस्था का एल्केलोसिस कहते है और यदि रक्त का pH का मान 7.35 से कम हो जाता है, ऐसी अवस्था को एसिडोसिस कहते हैं|
दैनिक जीवन में pH का महत्व :-
रक्त और हमारा शरीर :- हमारा शरीर 7.0 से 7.8 pH परास के बीच कार्य करता है। जीवित प्राणी केवल संकीर्ण pH परास (परिसर) range में ही जीवित रह सकते हैं। वर्षा के जल की pH मान जब 5.6 से कम हो जाती है तो वह अम्लीय वर्षा कहलाती है।
अम्लीय वर्षा की हानियाँ :- अम्लीय वर्षा का जल जब नदी में प्रवाहित होता है तो नदी के जल के pH का मान कम हो जाता है। ऐसी नदी में जलीय जीवधारियों की उत्तरजीविता कठिन हो जाती है।
मिटटी की अम्लीयता :- कई बार किन्ही कारणों से अथवा अम्लीय वर्षा के कारण मिटटी का pH मान कम हो जाने से इस भूमि से अच्छी उपज नहीं मिलती है, चूँकि अच्छी उपज के लिए पौधों को एक विशिष्ट pH परास की आवश्यकता होती है| मिटटी में अम्लीय गुण बढ़ जाने से पौधों को नुकसान पहुँचता है, जिससे फसल अच्छी नहीं होती है|
मिटटी के pH परास को ठीक करने से उपाय :- मिटटी के अम्लीयता ख़त्म करने के लिए मिटटी में चाकपाउडर या चूना मिलाया जाता है ताकि इसकी अम्लीयता ख़त्म करके मिटटी की प्रकृति क्षारीय बन जाय|
अम्लीय माध्यम में भोजन का पचना :- pH का महत्व हमारे आमाशय से उत्पन्न हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) से भी है| यह भी एक विशिष्ट pH पर उदर (पेट) को बिना हानि पहुँचाये भोजन के पाचन में सहायता करता है| समान्यत: हमारा उदर का pH परास लगभग 1.5 – 3.5 के बीच कार्य करता है| इनमें भी ये निम्न दो स्थितियाँ होती हैं|
अल्प अम्लता :- कुछ व्यक्तियों में HCl का स्राव बहुत कम होता है जिससे उनके भोजन नहीं पचता अथवा कम पचता है| ऐसी अवस्था को अल्प – अम्लता (अपच) कहते है| ऐसे व्यक्ति को अपने भोजन के साथ अम्लीय पदार्थ जैसे निम्बू या सिरका लेना पड़ता है, अथवा पाचक-रस उत्पन्न करने वाली औषधीयाँ लेना पड़ता है|
अति-अम्लता :- उदर में अत्यधिक अम्ल उत्पन्न होने की स्थिति में व्यक्ति उदर में दर्द एवं जलन का अनुभव करता है| इस दर्द या जलन से मुक्त होने के लिए ऐन्टासिड लेना पड़ता है|
(प्रति-अम्ल औषधि) :- ऐन्टासिड अम्ल के प्रभाव को कम करने वाले दुर्बल क्षारक होते है | जैसे – मिल्क ऑफ़ मैग्नेशिया (मैग्नेशियम हाइड्रोऑक्साइड), एल्युमीनियम हाइड्रोऑक्साइड तथा सोडियम हाइड्रोऑक्साइड जैसे दुर्बल क्षारक ऐन्टासिड के संघटक में शामिल होते है| ये अम्लीय प्रभाव को उदासीन कर देते हैं|
दन्त-क्षय :- समान्यत: मुँह का pH 5.5 रहता है | यदि इसका मान 5.5 से कम हो जाए तो दन्त-क्षय प्रारंभ हो जाता है| दाँतों का इनैमल (दत्तवल्क) कैल्शियम फोस्फेट का बना होताहै जो शरीर का सबसे कठोर पदार्थ है| यह दाँतों की बाहर से बचाव करता है| जब मुँह का pH 5.5 से कम हो जाता है तो यह धीरे-धीरे संक्षारित होने लगता है|
मुँह का pH कम होने का कारण :- जब हम भोजन या कोई मीठी चीज खाते हैं तो भोजन के पश्चात् मुँह में अवशिष्ट शर्करा एवं खाद्य पदार्थ रह जाते है जिस पर मुँह में उपस्थित बैक्टीरिया उसका निम्नीकरण करते है और उससे अम्ल उत्पन्न करते है| यह अम्ल इनेमल को नष्ट कर देता है जो दंत-क्षय का प्रमुख कारण बनता है|
दन्त-क्षय से बचाव :- भोजन के बाद मुँह साफ करने से इससे बचाव किया जा सकता है। मुँह की सफाई के लिए क्षारकीय दंत-मंजन का उपयोग करने से अम्ल की आधिक्य मात्रा को उदासीन किया जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप दंत क्षय को रोका जा सकता है।
क्लोर-क्षार प्रक्रिया :- जब सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक) के जलीय विलयन से विद्युत धारा प्रवाहित की जाती है तो यह वियोजित होकर सोडियम हाइड्रोऑक्साइड, क्लोरीन गैस और हाइड्रोजन गैस प्रदान करता है| इस प्रक्रिया को क्लोर-क्षार प्रकिया कहते हैं|
इस प्रक्रिया का रासायनिक समीकरण निम्न है :

2NaCl(aq) + 2H2O(l) → 2NaOH(aq) + Cl2 (g) + H2(g)
सोडियम क्लोराइड का विद्युत अपघटन :- जब सोडियम क्लोराइड के जलीय विलयन से विद्युत प्रवाहित की जाती है तो इसके एनोड से क्लोरीन गैस और कैथोड से हाइड्रोजन गैस उत्पन्न करता है| सोडियम हाइड्रोऑक्साइड विलयन इसके कैथोड के पास बनता है|
क्लोर-क्षार प्रक्रिया के उत्पाद :-
⦁ सोडियम हाइड्रोऑक्साइड
⦁ क्लोरीन गैस
⦁ हाइड्रोजन गैस

सोडियम हाइड्रोऑक्साइड का उपयोग :-
इसका उपयोग धातुओं से ग्रीज हटाने के लिए किया जाता है|
⦁ साबुन और अपमार्जक बनाने में किया जाता है|
⦁ इसका उपयोग कागज बनाने में भी किया जाता है|
⦁ और इसका उपयोग कृत्रिम फाइबर बनाने में किया जाता है|
क्लोरीन गैस का उपयोग :-

क्लोरीन गैस का उपयोग जल की स्वच्छता के लिए किया जाता है|
⦁ स्विमिंग पूल में
⦁ PVC, CFCs और कीटाणुनाशक बनाने ने किया जाता है|
⦁ और इसका उपयोग रोगाणुनाशक बनाने में भी किया जाता है|
हाइड्रोजन गैस का उपयोग :-

इसका उपयोग ईंधन के लिए किया जाता है|
⦁ इसका उपयोग मार्गरीन बनाने के लिए किया जाता है|
⦁ और इसका उपयोग खाद के लिए अमोनिया बनाने के लिए किया जाता है|

हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का उत्पादन :- क्लोरीन और हाइड्रोजन क्लोर-क्षार प्रक्रिया के महत्वपूर्ण उत्पादन है, जिनका उपयोग हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के उत्पादन में किया जाता है| हाइड्रोक्लोरिक अम्ल एक महत्वपूर्ण रसायन है जिसका उपयोग निम्न पदार्थों के उत्पादन में किया जाता है|
दवाइयों के निर्माण में,
⦁ सौन्दर्य प्रसाधन के निर्माण में,
⦁ अमोनियम क्लोराइड के निर्माण में और
⦁ इस्पात के सफाई के लिए प्रयोग होता है|

विरंजक चूर्ण का उत्पादन :- क्लोर-क्षार प्रक्रिया से प्राप्त क्लोरीन और सुखे बुझे हुए चूने की क्रिया से विरंजक चूर्ण का निर्माण होता है|
इस प्रक्रिया का रासायनिक समीकरण निम्नलिखित है
Ca(OH)2 + Cl2 → CaOCl2 + H2O
विरंजक चूर्ण का उपयोग :-
वस्त्र उद्योग में सूती एवं लिनेन के विरंजन के कागज़ की पैफक्ट्री में लकड़ी के मज्जा एवं लाउंड्री में साफ कपड़ों के विरंजन के लिए
कई रासायनिक उद्योगों में एक उपचायक के रूप में, एवं
⦁ पीने वाले जल को जीवाणुओं से मुक्त करने के लिए रोगाणुनाशक के रूप में
बेकिंग सोडा का उत्पादन
:- इस यौगिक का रासायनिक नाम सोडियम हाइड्रोजनकार्बोनेट (NaHCO3) है। कच्चे पदार्थों में सोडियम क्लोराइड का उपयोग कर इसका निर्माण किया जाता है।
इसका रासायनिक समीकरण निम्न है
NaCl + H2O + CO2 + NH3 → NH4Cl + NaHCO3
(अमोनियम क्लोराइड) (सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट)
इस प्रकिया के दो महत्वपूर्ण उत्पाद है (i) अमोनियम क्लोराइड और (ii) बेकिंग सोडा
बेकिंग सोडा का उपयोग :-
⦁ सोडा का उपयोग आमतौर पर रसोईघर में स्वादिष्ट खस्ता पकौड़े बनाने के लिए किया जाता है।
कभी-कभी इसका उपयोग खाने को शीघ्रता से पकाने के लिए भी किया जाता है।
⦁ यह एक दुर्बल क्षारक भी है जिसका उपयोग कई बार अति-अम्लता की स्थिति में की जाती है | यह ऐन्टैसिड का संघटक भी है
|
⦁ इसका उपयोग सोडा-अम्ल अग्निशामक में भी किया जाता है|
⦁ इसका उपयोग बेकिंग पाउडर को बनाने में किया जाता है|
⦁ खाना पकाते समय जब इसे गर्म किया जाता है तो निम्न अभिक्रिया होती है
:

बेकिंग पाउडर का निर्माण :- बेकिंग सोडा एवं टार्टरिक अम्ल जैसा मंद खाध्य अम्ल के मिश्रण से बेकिंग पाउडर का निर्माण होता है|
जब बेकिंग पाउडर को जल में मिलाकर गर्म किया जाता है तो यह कार्बन डाइऑक्साइड जल और अम्ल का सोडियम लवण प्रदान करता है जिसकी निम्न अभिक्रिया होती है :
NaHCO3 + H+ → CO2 + H2O + अम्ल का सोडियम लवण इस अभिक्रिया से कार्बन डाइऑक्साइड उत्पन्न होता है जो ब्रेड या केक को फुलाने, स्पोंजी बनाने या मुलायम बनाता है |

  1. ↩︎

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